मानसून को केरल पहुंचने में तीन-चार दिन की देरी की आशंका, मौसम विभाग ने कहा- अनुकूल हो रहीं परिस्थितियां

Monsoon misses onset date in Kerala IMD says conditions becoming favourable

नई दिल्ली। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने रविवार को केरल में मानसून के पहुंचने की तारीख से तीन से चार दिन की देरी की आशंका जताई है। सामान्य तौर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून राज्य में एक जून को करीब सात दिनों के मानक विचल के साथ दस्तक देता है। विभाग (आईएमडी) ने मई के मध्य में कहा था कि यह 4 जून तक केरल पहुंच सकता है।

आईएमडी ने रविवार को एक बयान में कहा, दक्षिण अरब सागर के ऊपर पछुआ हवाओं के बढ़ने से परिस्थितियां अनुकूल हो रही हैं। साथ ही, पछुआ हवाओं की गहराई धीरे-धीरे बढ़ रही है और आज पश्चिमी हवाओं की गहराई औसत समुद्र तल से 2.1 किलोमीटर तक पहुंच गई है। 

विभाग ने कहा, दक्षिण-पूर्वी अरब सागर में बादलों का द्रव्यमान भी बढ़ रहा है। हमें उम्मीद है कि केरल में मानसून की शुरुआत के लिए इन अनुकूल परिस्थितियों में अगले तीन-चार दिनों के दौरान और सुधार होगा। इसकी लगातार निगरानी की जा रही है और कल (सोमवार) को आगे की जानकारी दी जाएगी। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि देरी से देश में खरीफ की बुवाई और कुल बारिश पर असर पड़ने की संभावना नहीं है। 

दक्षिण-पूर्व मानसून 2022 में 29 मई, 2021 में 3 जून, 2020 में 1 जून,  2019 में 8 जून और 2018 में 29 मई को केरल पहुंचा था। आईएमडी ने पहले कहा था कि अल नीनो की स्थिति के बावजूद दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान भारत में सामान्य बारिश होने की उम्मीद है। उत्तर पश्चिम भारत में सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान है। 

पूर्वी और पूर्वोत्तर, मध्य और दक्षिण प्रायद्वीप में 87 सेंटीमीटर के दीर्घकालिक औसत के 94-106 फीसदी पर सामान्य बारिश होने की उम्मीद है। लंबी अवधि के औसत से 90 फीसदी से कम बारिश को ‘कम’, 90 फीसदी से 95 फीसदी के बीच ‘सामान्य से कम’, 105 फीसदी से 110 फीसदी के बीच ‘सामान्य से अधिक’ और 100 फीसदी से अधिक को ‘अतिरिक्त’ वर्षा माना जाता है। 

भारत के कृषि परिदृश्य के लिए सामान्य वर्षा महत्वपूर्ण है, जिसमें शुद्ध खेती क्षेत्र का 52 फीसदी इस पर निर्भर है। यह देश भर में बिजली उत्पादन के अलावा पीने के पानी के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों की भरपाई के लिए भी महत्वपूर्ण है। देश के कुल खाद्य उत्पादन में वर्षा सिंचित कृषि का योगदान लगभग 40 फीसदी है, जो इसे भारत की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है।