कोरबाः पुरातत्वविद हरि सिंह क्षत्री ने खोजे प्राचीनतम शैलाश्रय, कभी रही होगी यहां आदि मानवों की बड़ी बस्ती

कोरबा। प्राचीन वस्तुओं , शिल्पों , शैलाश्रयों , पुरातात्विक धरोहरों का अध्ययन अपेक्षाकृत कम ही लोग करते हैं, क्योंकि यह ऐसा विज्ञान है जिसमें  अध्ययन ,अनुभव के साथ-साथ दुर्गम स्थानों पर पहुंचकर उन्हें खोजने की आवश्यकता होती है । विगत लगभग 30 वर्षों से कोरबा जिले के दुर्गम स्थानों पर स्वयं जाकर अपनी पुरातन सभ्यता और भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने वाले एक पुरातत्वविद हरि सिंह क्षत्री वह जाना पहचाना नाम है जो नित नई खोज में संलग्न रहते हैं । वर्तमान में आप कोरबा जिला पुरातत्व संघ के मार्गदर्शक हैं साथ ही संस्कार भारती छत्तीसगढ़ के पुरातत्व विधा के प्रांतीय संयोजक भी हैं ।

कोरबा जिले में अनेक शैलाश्रयों , भित्तिचित्रों एवं शिल्पों की खोज करने वाले हरि सिंह को गत माह कोरबा से 23 किलोमीटर दूर परसाखोला गांव में कुछ शैलाश्रय मिले हैं । जिनमें से बाघमाडा , भालूमाड़ा , रानीमाड़ा प्रमुख हैं , इनमें से कुछ पुर्वाभिमुख और कुछ पश्चिमाभिमुख हैं । परसाखोला गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में एक त्रिकोणाकार शैलाश्रय मतरेंगाखोला की खोज भी आपने की है । मान्यता है कि त्रेता युग में मतंग ऋषि इसी गुफा में ध्यान साधना करते थे । इसका आकार 10 मीटर लंबा 15 मीटर गहरा और 3 मीटर ऊंचा है । गिदराईलमाड़ा गुफा 5 मीटर लंबी 2 मीटर ऊंची और 12 मीटर गहरी है इसमें दो कप्यूल्स ( कप के समान गड्ढा जिसका उपयोग आदिमानव अनाज कूटने आदि के लिए करते होंगे ) पाए गए । कूडीमाडा डोंगरी शैलाश्रय लगभग 40 मीटर लंबा 5 मीटर गहरा और 4 मीटर ऊंचा है । इसके बाएं भाग में शैल चित्र भी मिले जो सैकड़ों वर्षों में वातावरण के कुप्रभाव से लगभग नष्ट हो गए हैं । केचराकोना शैलाश्रय समुद्र तल से लगभग 1500 फिट की ऊंचाई पर स्थित प्राकृतिक गुफा है । ग्राम परसाखोला के आसपास मिले इन सभी शैलाश्रयों में पाषाण कालीन लघु उपकरण माइक्रोलिथ , चर्ट्स , चाल्सीडोनी क्रोड प्रचुर मात्रा में मिले हैं । यह सभी पत्थर से बने उपकरण होते थे जो आदिमानव द्वारा मांस काटने , नाखून काटने , बाल काटने आदि के लिए ब्लेड के रूप में उपयोग में लाए जाते थे । परसाखोला के आसपास इन  शैलाश्रयों में 40 से अधिक कप्यूल्स मिले हैं जो इस बात को प्रमाणित करता है कि यहां कभी आदि मानवों की बड़ी बस्ती रही होगी । इस स्थान पर एक साथ इतने सारे शैलाश्रयों के मिलने से उत्साहित होकर हरि सिंह ने तत्काल उसी पहाड़ी से भारत के सुप्रसिद्ध पुरातत्व विशेषज्ञ पद्मश्री के. के. मुहम्मद (पूर्व क्षेत्रीय निदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और वर्तमान निदेशक आगाखान सांस्कृतिक ट्रस्ट)  से वीडियो कॉल पर बात करके उन्हें शैलाश्रयों को दिखाया । साथ ही देश के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर न्यास उज्जैन से जुड़ी लेखिका एवं अनुसंधान कर्ता श्रीमती विनीता देशपांडे से भी वीडियो कॉल पर बात की । दोनों ने प्रथम दृष्टया इसके मानव निर्मित होने की पुष्टि करते हुए इसे अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण माना व इसके संरक्षण की आवश्यकता प्रतिपादित की ।

इस खोज के संबंध में एक प्रतिवेदन हरि सिंह क्षत्री ने जिला कलेक्टर महोदय को भी दिया है जिससे इस स्थान का संरक्षण हो सके और आगे की विस्तृत खोज के लिए मार्ग प्रशस्त हो सके।

ज्ञातव्य है कि हरि सिंह क्षत्री द्वारा  पूर्व में कोरबा जिले में पुरातात्विक महत्व के स्थानों की खोजों पर आधारित एक पुस्तिका जल्द ही प्रकाशित होने वाली है । यह पुस्तिका पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर न्यास उज्जैन , संस्कार भारती पश्चिम महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ के तत्वावधान में प्रकाशित होगी । इस पुस्तिका का लेखन कार्य लगभग समाप्ति की ओर है ।