Bharat Jodo Yatra: राहुल की चमक बढ़ी, मगर गंभीरता से स्वीकार्यता नहीं, अब निकालनी होगी कांग्रेस जोड़ो यात्रा!

Bharat Jodo Yatra- Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi in Jammu Kashmir

नई दिल्ली। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गई है। राहुल गांधी, 30 जनवरी को श्रीनगर में पार्टी मुख्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे। पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा है कि 26 अप्रैल तक सभी राज्यों में घर-घर तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा राहुल गांधी का संदेश और मोदी सरकार की विफलता पर चार्जशीट पहुंचाई जाएगी। इस यात्रा को लेकर प्रख्यात राजनीतिक एवं सामाजिक विचारक और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आनंद कुमार ने कहा, ठीक है यात्रा से राहुल की छवि सुधरी है। हालांकि अभी ये देखने वाली बात होगी कि लोगों में उनकी स्वीकार्यता को लेकर कोई गंभीरता है या नहीं। अगर अभी की बात करें तो ‘गंभीरता’ को लेकर कुछ खास नहीं है। इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस के लिए ‘मिशन 24’ आसान हो जाएगा, इस बाबत अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। इससे पहले बिखरे परिवार के ‘राजकुमार’ को ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ निकालनी चाहिए।    

कांग्रेस का कुनबा अभी एकजुट होना बाकी है

प्रो. आनंद कुमार ने एक विशेष बातचीत में कहा, मौजूदा परिस्थितियों में राहुल गांधी को कांग्रेस जोड़ने पर फोकस करना होगा। भले ही राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली है, लेकिन कांग्रेस का कुनबा अभी एकजुट होना बाकी है। राहुल को प्रयोग करने की आवश्यकता है। इन्हीं प्रयोगों पर जनता के बीच गंभीरता से राहुल की स्वीकार्यता टिकी है। विपक्ष, जहां पर नए नेता खड़े हो रहे हैं, वहां राहुल के लिए अपनी जगह बनाना आसान नहीं है। लोकतंत्र में पुख्ता सबूतों को लेकर सरकार की आलोचना करना फायदेमंद रहता है। राहुल ऐसा कर रहे हैं। उन्हें यह देखना होगा कि उनकी पार्टी में तीन तरह के लोग हैं। एक, जो पार्टी में सुधार चाहते हैं। दूसरा, वे हैं जो अपनी ज्यादा हिस्सेदारी चाहते हैं। अमूमन इन्हीं लोगों की संख्या अधिक रहती है। तीसरा, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बदलाव चाहते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम ही रहती है। अगर ऐसा होता तो पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह को अन्ना आंदोलन से सबक लेकर बदलना चाहिए था। उस वक्त ऐसे बदलाव के समर्थक मुश्किल से तीन फीसदी लोग ही रहे होंगे।

देश में मौन है, विरोध भी है …

राहुल गांधी को यह समझना होगा कि लोकतंत्र में कई बातें, मध्यम वर्ग से तय कर दी जाती हैं। उपेक्षित समुदाय से बात नहीं होती। आदिवासी वर्गों से कोई भी सीधे बात नहीं करता। भारत का एक बड़ा हिस्सा आज भी मौन है। राहुल को उनका मौन तुड़वाने का प्रयास करना होगा। भले ही मार्केट में ऐसे सर्वे आते रहते हैं कि पीएम पद के लिए कौन उम्मीदवार ज्यादा पसंद है या कम पसंद है। ऐसे सर्वे का कोई ठोस आधार नहीं है। देश में परिवर्तन की आहट है, लेकिन विपक्ष ठीक तरीके से उसे सुन नहीं पा रहा है। किसान में यह बात फैली है कि मौजूदा सरकार किसान विरोधी है। मध्यम वर्ग के बच्चों को रोजगार नहीं है। महंगाई है, इसे भाजपा समर्थक भी मानते हैं। विपक्ष में आज ऐसा कोई एक नेता नहीं है कि जो सरकार की जिम्मेदारी को कॉमन गोल में बदल दे। सभी के पास विश्वसनीयता का संकट है। राजस्थान में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं, मगर वे यूपी के सीएम योगी की तरह अपनी एक अलग चमक पैदा नहीं कर सके।

देश में विकल्प को लेकर कुछ ऐसा रहा है अतीत

प्रो. आनंद कुमार ने कहा, देश में विकल्प की बात है, तो बहुत से अवसरों पर यह बात सही नहीं हुई। किसे मालूम था कि राजीव गांधी पीएम बनेंगे। वीपी सिंह के बारे में तो कोई सोच भी नहीं सकता था। मनमोहन सिंह को खुद नहीं मालूम था कि वे पीएम बन रहे हैं। मोदी नहीं जानते थे कि गुजरात से ही दिल्ली का रास्ता तय होगा। आज राहुल गांधी, मोदी के समक्ष नहीं खड़े हो पा रहे हैं। पिछले कुछ समय में वे केसीआर, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल की तरह ‘चांस’ पर खेल रहे हैं। आज मुद्दा राहुल नहीं, मोदी है।

किस पॉइंट पर लगानी होगी सेंध

कांग्रेस के युवराज को समझना होगा कि भाजपा किस पॉइंट पर कमजोर पड़ रही है। वहीं पर सेंध लगानी होगी। अकाली दल और शिवसेना, भाजपा से क्यों दूर हो गए। पासवान की पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई। नीतीश कुमार क्यों पीछे हट गए। भाजपा के समर्थक दल घट रहे हैं। बतौर आनंद कुमार, ठीक है, यात्रा से राहुल चमक गए हैं। उन्हें आदर सम्मान मिल रहा है, मगर देश के नेता की कसौटी पर उतरना अभी बाकी है। कांग्रेस में सामाजिक व आर्थिक बोल अलग हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक उद्योगपति की जय बोल रहे हैं तो राहुल उन पर निशाना साधते रहते हैं। राहुल गांधी की यह यात्रा तभी सार्थक होगी, जब वे अपनी पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में मजबूती से ले जा सकें।