KCR की रैली के बाद कितना एकजुट होगा विपक्ष, क्या 2024 से पहले ये तीसरे मोर्चे की शुरुआत?

केसीआर की सभा

नई दिल्ली। 2024 लोकसभा चुनाव के लिए अभी से सभी राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक कर अपना एजेंडा तय किया। कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए पार्टी को नई धार देने में जुटे हैं। वहीं, एक तीसरा मोर्चा भी बनता दिख रहा है। बुधवार को इसकी एक झलक तेलंगाना में देखने को मिली, जब के. चंद्रशेखर राव के बुलावे पर कई क्षेत्रीय दलों के बड़े नेता खम्मम पहुंचे।  

ऐसे में सवाल है कि लोकसभा चुनाव के लिए आखिर किस पार्टी की क्या तैयारी है? विपक्ष की अगुआई के लिए कौन क्या कर रहा है? कांग्रेस की इसमें क्या भूमिका हो सकती है? आइए समझते हैं…

पहले जान लीजिए कि तेलंगाना में क्या हुआ? 
तेलंगाना में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने खम्मम में एक जनसभा का आयोजन किया। इसकी अगुआई तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने खुद की। राव के बुलावे पर कई बड़े दलों के नेता पहुंचे। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री और सीपीआई (एम) नेता पिनाराई विजयन, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और CPI महासचिव डी. राजा शामिल हुए। 

तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का नाम बदलकर बीआरएस किए जाने के बाद यह पहली सार्वजनिक बैठक थी। बैठक से ठीक पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने विपक्ष की तरफ से आए सभी बड़े नेताओं को यदाद्री में स्थित भगवान लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी के मंदिर में दर्शन कराया। राव सरकार ने इस मंदिर का बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार किया है। 

मंदिर पहुंचे विपक्षी नेता

मंदिर पहुंचे विपक्षी नेता – फोटो : ANI 

किस नेता ने क्या कहा? 
खम्मम में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए सपा मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भाजपा पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि कल BJP की कार्यकारिणी बैठक खत्म हुई, उन्होंने कहा कि 400 दिन बाकी है, हमें तो लगता था कि ये सरकार वो है जो दावा करती थी कि हटेगी नहीं लेकिन अब वो स्वयं स्वीकार रहे हैं कि अब 400 दिन है। जो सरकार अपने दिन गिनने लगे तो समझ लो ये सरकार 400 दिन बाद रुकने वाली नहीं है। अखिलेश यादव ने कहा कि मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण हो गया है। इससे शुभ कार्यों की शुरुआत होती है, वहीं बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने की शुरुआत दक्षिण से हुई है। 

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा लोकतंत्र की नींव को तबाह करना चाहती है। आज हम एक नए प्रतिरोध की शुरुआत कर रहे हैं। हमारी सभी देशी भाषाओं को दरकिनार करते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। अपनी मातृभाषाओं को खत्म कर हिंदी थोपने से राष्ट्र की अखंडता प्रभावित होगी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी भाजपा पर जमकर बरसे। कई तरह के आरोप भी लगाए। 

इस राजनीतिक एकता के क्या मायने? 
इसे समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की गई। उन्होंने कहा, ‘देश में इस वक्त तीन बड़े राजनीतिक गुट बनते दिख रहे हैं। पहली भाजपा है, जो सत्ता में है। दूसरी कांग्रेस जो मुख्य विपक्षी दल है और तीसरा एक नया मोर्चा बनता दिख रहा है। इस मोर्चे में कई क्षेत्रीय दल शामिल हैं। मसलन समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, टीआरएस, वाम दल, आरजेडी, जेडीयू जैसे दल। कुछ ऐसे भी दल हैं, जो किसी भी गुट में शामिल नहीं हैं। जैसे बसपा, अकाली दल।’

प्रमोद आगे कहते हैं, ‘जब सपा मुखिया अखिलेश यादव को कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के लिए निमंत्रण दिया तो वह नहीं गए। लेकिन राव के बुलावे पर वह तेलंगाना पहुंच गए। ये बड़ा राजनीतिक संदेश है। इससे साफ है कि देश में तीसरे मोर्चे के गठन की तस्वीर साफ होती दिख रही है। इस मोर्चे ने तीन बड़ी रणनीति पर काम शुरू किया है।’

विपक्षी नेता एक साथ

विपक्षी नेता एक साथ – फोटो : ANI 

1. कांग्रेस छोड़कर सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाया जाए: विपक्ष में अभी काफी बिखराव है। मसलन कांग्रेस अलग है, जबकि अन्य दलों में भी एकजुटता नहीं आ पाई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव सभी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। समय-समय पर तीनों ने विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम किया, लेकिन नहीं कर पाए। इसका कारण यही था कि कोई भी दूसरे दल के नेता के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहता था। अब विपक्ष के कई दलों ने मिलकर इसका रास्ता निकाला है। इसके अनुसार, कांग्रेस छोड़कर सभी विपक्षी दलों को एकसाथ एक मंच पर लाने की तैयारी है। हालांकि, चुनाव से पहले किसी तरह के गठबंधन का एलान नहीं होगा।  

तेलंगाना में विपक्षी नेता एक साथ

तेलंगाना में विपक्षी नेता एक साथ – फोटो : ANI 

2. जिसकी ज्यादा सीटें, उसे मिल सकता है नेतृत्व का मौका: कांग्रेस से अलग होकर तीसरा मोर्चा बना रहे दलों के नेताओं ने तय किया है कि लोकसभा चुनाव में सभी एक-दूसरे का सहयोग करेंगे। सब अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव लड़ेंगे और जिसकी ज्यादा सीट होगी चुनाव बाद उसे ही मोर्चे के नेतृत्व का मौका मिल सकता है। इस मोर्चे में अभी दक्षिण से वाम दल और बीआरएस हैं। जबकि, उत्तरभारत से सपा, आप, जेडीयू, आरजेडी जैसे दल शामिल हैं। चुनाव से पहले किसी भी तरह के मोर्चे का एलान नहीं होगा, लेकिन चुनाव के बाद अगर नतीजे इन दलों के पक्ष में होते हैं तो गठबंधन की सरकार जरूर बनाने की कोशिश होगी। तब नेतृत्व उसे दिया जाएगा, जिसके पास सबसे ज्यादा सांसदों का साथ होगा। मतलब अगर तब तक चंद्रशेखर राव अपने पक्ष में ज्यादा सांसद ले आते हैं तो वह पीएम पद के लिए दावेदारी कर सकेंगे। वहीं, अगर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल ऐसा कर लेते हैं तो ये अपनी दावेदारी कर पाएंगे। 

3. चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी: इस एकजुटता के बाद हो सकता है कि भले ही भाजपा के खिलाफ सभी एकजुट होंगे, लेकिन अपने-अपने जनाधार वाले राज्यों में चुनाव अकेले दम पर ही लड़ेंगे। इससे सीटें ज्यादा जीतने की संभावना होगी और विवाद भी नहीं होगा। चुनाव के बाद अगर स्थिति बनती है तो सभी एक साथ आ जाएंगे।