छत्तीसगढ़ में मिली 4 आंखों वाली डेविल फिश: दक्षिण अमेरिका के अमेजन नदी में पाई जाती है सकरमाउथ कैटफिश; एक्सपर्ट ने बताया खतरनाक

सकर माउथ कैटफिश। - Dainik Bhaskar

गरियाबंद। जिले के ग्राम चिखली में एक किसान के जाल में ऐसी मछली फंस गई, जिसे देख वो भी हैरान रह गया। जब उसने जाल निकाला, तो उसमें से दुर्लभ ब्लैक टाइगर फिश निकली। ऐसी मछली इस इलाके में किसान नवल सिंह ने पहली बार देखी थी, जिसकी 4 आंखें हों और जो देखने में इतनी खतरनाक हो। इधर तिरंगा चौक पर इस दुर्लभ और खतरनाक दिखने वाली मछली को देखने के लिए भीड़ जुट गई। ये मछली गरियाबंद के पंटोरा की पैरी नदी में एक ग्रामीण को मिली है।

ग्राम चिखली के किसान नवल सिंह 12 जनवरी को पैरी नदी में मछली पकड़ने के लिए गए थे। उन्होंने नदी में जाल डाला हुआ था। जब उन्होंने जाल को बाहर निकाला, तो उसमें अलग तरह की मछली फंसी हुई मिली। नवल ने बताया कि वो तुरंत मछली को लेकर अपने परिचित एल्डरमैन बाबा सोनी के पास गया। वहां एल्डरमैन मुकेश रामटेके समेत कई लोग जुट गए। मुकेश ने बताया कि इस किस्म की मछली को हमारे क्षेत्र में पहली बार देखा जा रहा है। गूगल पर सर्च करने पर पता चला कि इसे सकर माउथ कैटफिश कहते हैं। यह मछली भारत से हजारों किलोमीटर दूर दक्षिण अमेरिका की अमेजन नदी में पाई जाती है। इसे ब्लैक टाइगर फिश या ब्लैक टाइगर श्रृंप (झींगा) भी कहा जाता है।

दुर्लभ मछली।

दुर्लभ मछली।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत बहुत ज्यादा है। यह तेजी से बढ़ने वाली श्रृंप है। इसका आकार बड़ा होने की वजह से यह मछली पालकों के लिए लाभदायी होती है। आम तौर पर इसकी तीन किस्में वाइल्ड, ब्लू टाइगर और ब्लैक टाइगर पाई जाती है। वहीं एक्सपर्ट का मानना है कि भारत में इन मछलियों का मिलना ठीक नहीं हैं और इनका असली घर भारत की नदियां नहीं हैं। इस मछली की 4 आंखें होती हैं, साथ ही इसमें एयरोप्लेन के आकार के पंख दिखाई पड़ते हैं।

दक्षिण अमेरिका में पाई जाती है ब्लैक टाइगर।

दक्षिण अमेरिका में पाई जाती है ब्लैक टाइगर।

छत्तीसगढ़ में लगातार मिल रहीं दुर्लभ मछलियां, ‘महाशीर’ के बारे में भी जानिए

मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2011 में महाशीर को राज्य मछली घोषित किया था। यह दुर्लभ महाशीर मछली गरियाबंद जिले के सिकासेर बांध के पानी में भी पल रहे हैं, जिससे राज्य सरकार बेखबर है। जबकि 5 वर्ष पहले महाशीर की पहचान करने वाली निजी संस्था का दावा है कि प्रदेश का यह इकलौता स्थान है, जहां महाशीर मौजूद है। हालांकि सरक्षंण के अभाव में इसकी संख्या तेजी से घट रही है।

सकरमाउथ कैटफिश के नाम से भी जानी जाती है।

सकरमाउथ कैटफिश के नाम से भी जानी जाती है।

सिकासेर जलाशय न केवल अपनी अनुपम प्राकृतिक छटा को लेकर विख्यात है, बल्कि यहां पाई जाने वाली एक खास प्रजाति की मछली महाशीर भी इसे खास बनाती है। पश्चिमी घाटी, हिमालय में मौजूद जलधाराएं और नर्मदा नदी में इसकी उपस्थिति दर्ज की गई थी। वन्य प्राणियों के संवर्धन पर इस इलाके में काम कर रही एनजीओ (नोवा नेचर वेलफेयर सोसायटी) ने 2016 में इस प्रजाति की मौजूदगी सिकासेर जलाशय में होने की पुष्टि की थी। संस्था के अध्यक्ष एम सूरज ने बताया कि बाजार में बिकने आई मछलियों को देखकर दुर्लभ होने की आशंका हुई और अध्ययन करने पर पता चला कि यह दुर्लभ महाशीर मछली है।

महाशीर हाथों में लिए हुए व्यक्ति।

महाशीर हाथों में लिए हुए व्यक्ति।

किया जाएगा अध्ययन

इस मछली की उपप्रजाति जानने के लिए संस्था नोवा नेचर वेलफेयर सोसायटी द्वारा इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के साथ काम किया जा रहा है। सूरज ने बताया कि वन विभाग को इसकी प्रारंभिक पहचान रिपोर्ट सौंपी गई है। आगे विस्तृत अध्ययन के लिये अनुमति मांगी गई है, ताकि भारत में पाई जाने वाली महाशीर की 16 उप प्रजातियों में से यह कौन सी के श्रेणी में आती है, इसका पता लग सके।

महाशीर को कहा जाता है पानी का शेर।

महाशीर को कहा जाता है पानी का शेर।

मप्र में मिला है राज्यकीय मछली का दर्जा

मध्यप्रदेश सरकार ने 2011 में महाशीर को राज्यकीय मछली का दर्जा दिया हुआ है। मामले में मत्स्य विभाग की उपसंचालक मधु खाखा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में महाशीर की कोई जानकारी विभाग के पास मौजूद नहीं है। वैसे भी सिकासेर में मछली पालन का काम मतस्य महासंघ देखती है। मत्स्य महासंघ के प्रबंधन एस के साहू ने कहा कि अभी केवल मत्स्याखेट का ही काम देखते हैं। पालन या संवर्धन को लेकर कोई गाइडलाइन प्राप्त नहीं है।

इन्हें तेज बहाव है पसंद

जंगलों के परिस्थितिकी तंत्र में बाघ का जो दर्जा होता है, पानी में उसी तरह का दर्जा महाशीर को मिला हुआ है। इसे टाइगर फिश के नाम से भी जाना जाता है। मछुवारे बाढ़स और स्थानीय लोग इसे खुसेरा कहते हैं। सिकासेर जलाशय के बहाव वाले इलाके में इन्हें ज्यादातर देखा जाता है। जल के पारिस्थितिकी तंत्र को सन्तुलित करने में इनका अहम योगदान होता है। यह 15 किलो से भी अधिक वजन की हो सकती है। शक्तिशाली मछली होने के कारण इसे सामान्य जाल में नहीं फंसाया जा सकता है।

तेजी से घट रही है संख्या

शिकार करने वाले ग्रामीण और मछली के बीच रहकर लगातार काम कर रही नोवा नेचर संस्था का दावा है कि पिछले एक दशक में इनकी संख्या काफी कम हो गई है। कारण बताया कि इसका संवर्धन नहीं हो रहा है। खाने में अन्य मछलियों की तुलना में ये ज्यादा स्वादिष्ट होती है। इस मछली को चतुर और बलशाली माना जाता है। लेकिन प्रजनन काल में शक्ति कम होने के समय इनका आसानी से शिकार कर लिया जाता है, यही वजह है कि इसकी संख्या तेजी से घट रही है।

मछुआरों के जाल में फंसा था 60 किलो वजनी कछुआ भी

10 दिन पहले जांजगीर-चांपा जिले के बिर्रा गांव के पास स्थित बसंतपुर बैराज में 60 किलो वजनी विशालकाय कछुआ मिला था। 3 जनवरी को ये कछुआ मछुआरों की जाल में फंस गया था। इस कछुए को देखने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण मौके पर पहुंच गए थे। पुलिस को भी मामले की सूचना मिली। जिसके बाद वो मौके पर पहुंची और कछुए को महानदी के गहरे पानी में छोड़ दिया गया।

जानकारी के अनुसार, बिर्रा थाना क्षेत्र के बसंतपुर गांव में स्थानीय मछुआरे अजय चौहान, धनीराम पटेल, सीताराम, लालू यादव, रोशन पटेल मंगलवार को मछली पकड़ने गए थे। उन्होंने बैराज में जाल डाला हुआ था। लेकिन जब उन्होंने जाल निकाला, तो उसमें से 60 किलो वजनी कछुआ निकला। कछुए को देखकर मछुआरे काफी खुश हो गए। इधर जैसे ही स्थानीय लोगों को इसकी जानकारी मिली, तो वे बड़ी संख्या में कछुए को देखने पहुंच गए। लोगों ने इसकी जानकारी तत्काल बिर्रा पुलिस को भी दी, जिसके बाद पुलिस ने वन विभाग के उच्च अधिकारियों से भी संपर्क किया और उनसे राय ली गई कि कछुए का क्या किया जाए।