Demonetisation: नोटबंदी के बावजूद मुद्रा का चलन लगभग दोगुना हुआ, देश में 32.42 लाख करोड़ की करेंसी मौजूद

पुराने नोट।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटबंदी पर सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि सरकार के आंकड़े ही बताते हैं कि 2016 के नवंबर महीने में हुई नोटबंदी का देश में चलन में मौजूद मुद्रा (सीआईसी) पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं पड़ा। यह फैसला उन लक्ष्यों को बहुत हद तक नहीं हासिल कर सका जिसके कारण इसे लिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी। सरकार की ओर से अभूतपूर्व फैसले का एक मुख्य उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन के प्रवाह पर अंकुश लगाना बताया गया था।

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार देश में चलन में मौजूद मुद्रा (सीआईसी) चार नवंबर 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये थी जो 23 दिसंबर 2022 को बढ़कर लगभग दोगुनी यानी 32.42 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई।

आंकड़ों के अनुसार हालांकि नोटबंदी के ठीक बाद चलन में मौजूद करेंसी छह जनवरी 2017 को घटकर करीब नौ लाख करोड़ रुपये पर आ गई। यह चार नवंबर 2016 को चलन में मौजूद मुद्रा 17.74 लाख करोड़ रुपये की तुलना में करीब 50 प्रतिशत था। 

500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों पर बैन के बाद चलन में मौजूद मुद्रा का यह पिछले छह साल में सबसे निम्नतम स्तर रहा।  6 जनवरी, 2017 की तुलना में अब तक सीआईसी (चलन में मौजूद मुद्रा) में लगभग तीन गुना या 260 प्रतिशत से अधिक का उछाल आया है। 4 नवंबर 2016 की तुलना में इसमें लगभग 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 

नोटबंदी का असर जैसे-जैसे कम होता गया सीआईसी सप्ताह दर सप्ताह बढ़ता गया और वित्त वर्ष के अंत तक यह 74.3 प्रतिशत शिखर पर पहुंच गया। इसके बाद यह जून 2017 के अंत में नोटबंदी से पहले के अपने उच्चतम स्तर के लगभग 85 प्रतिशत पर पहुंच गया। 

नोटबंदी के कारण सीआईसी में लगभग 8,99,700 करोड़ रुपये (6 जनवरी, 2017 तक) की गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप बैंकिंग प्रणाली के पास सरप्लस लिक्विडिटी में बड़ी वृद्धि हुई। वहीं दूसरी ओर, नकद आरक्षित अनुपात (आरबीआई के पास जमा राशि का प्रतिशत) में लगभग 9 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। 

यह रिजर्व बैंक के तरलता प्रबंधन संचालन के लिए एक चुनौती की तरह था। केंद्रीय बैंक ने बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष तरलता को अवशोषित करने के लिए तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत अपने साधनों विशेष रूप से रिवर्स रेपो  की नीलामी का उपयोग किया। 

सीआईसी 23 दिसंबर 2022 के अंत में बढ़कर 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो 31 मार्च, 2022 के अंत में 31.33 लाख करोड़ रुपये था। 

नोटबंदी के बाद से सीआईसी में नोटबंदी के साल को छोड़कर हर साल वृद्धि देखी गई है। सीआईसी मार्च 2016 के अंत में 20.18 प्रतिशत घटकर 13.10 लाख करोड़ रुपये रह गया जो 31 मार्च 2015 के अंत में 16.42 लाख करोड़ रुपये था। 

नोटबंदी के अगले साल यह 37.67 प्रतिशत बढ़कर 18.03 लाख करोड़ रुपये हो गया और मार्च 2019 के अंत में 17.03 प्रतिशत बढ़कर 21.10 लाख करोड़ रुपये और 2020 के अंत में 14.69 प्रतिशत बढ़कर 24.20 लाख करोड़ रुपये हो गया। 

पिछले दो साल में मूल्य के लिहाज से सीआईसी की वृद्धि की रफ्तार 31 मार्च 2021 को 16.77 प्रतिशत बढ़कर 28.26 लाख करोड़ रुपये और 31 मार्च 2022 के अंत में 9.86 प्रतिशत बढ़कर 31.05 लाख करोड़ रुपये रही। 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के सरकार के 2016 के फैसले को बरकरार रखा है। 

न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में बहुत संयम बरता जाना चाहिए और अदालत फैसले की न्यायिक समीक्षा कर कार्यपालिका के विवेक की जगह नहीं ले सकती। 

हालांकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2) के तहत केंद्र की शक्तियों के बिंदु पर बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने का काम एक कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए था, न कि अधिसूचना के माध्यम से। 

उन्होंने कहा, ‘संसद को नोटबंदी पर कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी, यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के माध्यम से नहीं की जानी चाहिए थी। देश के लिए इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है। 

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इस फैसले के पहले कोई स्वतंत्र विचार नहीं लिया गया और केवल उनकी राय मांगी गई थी, जिसे सिफारिश नहीं कहा जा सकता है।  

न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी राम सुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि केंद्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती क्योंकि आरबीआई और केंद्र सरकार ने इस मसले पर विचार-विमर्श किया है।   शीर्ष अदालत ने आठ नवंबर 2016 को केंद्र की ओर से घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।