गैंगस्टर राजू ठेहट की गोली मारकर हत्या, आनंद पाल-बिश्नोई गैंग के साथ चल रही थी दुश्मनी

गैंगस्टर राजू ठेठ

सीकर। राजस्थान के सीकर में गैंगस्टर राजू ठेहट की गोली मारकर हत्या कर दी गई। छह बदमाशों ने राजू ठेहट को उसके घर के पास ही गोली मार दी। राजू ठेहट की आनंदपाल गैंग और बिश्नोई गैंग से रंजिश चल रही थी। लारेंस विश्नोई के राहित गोदारा ने हत्याकांड की जिम्मेदारी ली है।

राजू ठेहट की हत्या की सूचना पर पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए हैं। पुलिस ने पूरे जिले में नाकाबंदी कर दी है। राजू ठेहत के तीन गोली लगने की सूचना मिली है। हरियाणा और झुंझुनू की सीमाओं को सील कर दिया गया है। अपराध की दुनिया को छोड़ कर राजू ठेहत की राजनीति में आने के की चर्चा चल रही थी।

1995 में क्राइम की दुनिया में राजू ठेहट ने ली थी एंट्री
राजू ठेहट का नाम गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के अपराधी बनने से पहले से फैला हुआ था। आनंदपाल सिंह की मौत के बाद भी राजू ठेहट का नाम अभी भी राजस्थान में दबंगाई से लिया जाता था। अपराध के दुनिया में ठेहट ने 1995 के दौर में एंट्री की थी। उस समय भाजपा की भैरोंसिंह सरकार हवा के झोंके में झूल रही थी और राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लागू था। सीकर का एसके कॉलेज शेखावाटी के राजनीतिक का केंद्र था। कॉलेज में एबीवीपी का दबदबा था।  गोपाल फोगावट शराब के धंधे से जुड़ा हुआ था। जिसके राजू ठेहठ भी फोगावट के साथ काम करने लगा। 

अवैध शराब का कारोबार करता था ठेहट
फोगावट के साथ काम करते हुए राजू ठेहट की मुलाकात बलबीर बानुडा से हुई। बानुडा दूध का व्यापार करता था लेकिन राजू ठेहट से मुलाकात के बाद बानुडा को खूब पैसा कमाने की लत लगी। वह भी राजू ठेहट के साथ मिलकर शराब का कारोबार करने लगा। साल 1998 में बलबीर बानुडा और राजू ठेहट ने मिलकर सीकर में भेभाराम हत्याकांड को अंजाम दे दिया। यहीं से शेखावाटी में गैंगवार की शुरुआत हो गई। 1998 से लेकर 2004 तक बानुडा और राजू ठेहट ने शेखावाटी में शराब के अवैध कारोबार बेरोकटोक करने लगे। अगर कोई इस धंधे में शामिल उनकी जी हजूरी नहीं करता तो दोनों उसे रास्ते से हटा देते। 

बलबीर बानूडा से दोस्ती दुश्मनी में बदली
2004 में वसुंधरा राजे के पास राजस्थान की गद्दी थी। राजस्थान मे शराब के ठेकों की लॉटरी निकाली गई। जिसमें जीण माता मे शराब की दुकान राजू ठेहट और बलबीर बानुडा को मिली। दुकान शुरू हुई और उस पर बलबीर बानुडा का साला विजयपाल सेल्समैन के तौर पर रहने लगा। दिनभर में हुई शराब की खपत का हिसाब शाम को विजयपाल बानुडा और ठेहट दोनों को देता था। दुकान से जिस प्रकार की बचत राजू ठेहट चाहता था, वह बचत उसे मिल नहीं रही थी। ठेहट को लगा की विजयपाल दुकान की शराब बेचने की बजाय ब्लैक मे शराब बेचता है। इसी बात को लेकर राजू ठेहट और विजयपाल में कहासुनी हो गई और कहासुनी इस हद तक बढ़ गई की राजू ठेहट ने अपने साथियों के साथ मिलकर विजयपाल की हत्या कर दी। विजयपाल की हत्या के बाद राजू ठेहट और बलबीर बानुडा की दोस्ती अब दुश्मनी में बदल गई। बलबीर बानुडा अब अपने साले विजयपाल की हत्या का बदला लेने पर उतारू हो गया।

राजू ठेहट ने हरियाणा तक कारोबार फैलाया
राजू ठेहट पर गोपाल फोगावट का हाथ था इसलिए ठेहट से बदला लेना इतना भी आसान नहीं था। बदला लेने के लिए बलबीर बानुडा ने नागौर जिले के सावराद गांव के रहने वाले आनंदपाल सिंह से हाथ मिलाया। राजू ठेहट आर्थिक रूप से आनंदपाल और बलबीर बानुडा के मुकाबले मजबूत था। बदला लेने के लिए आर्थिक रूप से भी मजबूत होना बेहद जरूरी था। इसलिए आनंदपाल और बलबीर बानुडा ने शराब और माइनिंग का कारोबार शुरू किया। जिसमें दोनों को फायदा भी मिला और इसी क्रम में चलते-चलते अपनी गैंग को भी मजबूत बना लिया, दोनों गैंग के गुर्गों के बीच लगातार गैंगवार होती रही और दोनों तरफ खून की नदियां बहती रही। राजू का शराब का कारोबार राजस्थान के अलावा हरियाणा तक फैल चुका था। ठेहट को राजनीति से सरंक्षण था। इसलिए एक राज्य से दूसरे राज्य में शराब के ट्रक बिना रोक टोक जाने लगे। आनंदपाल और बलबीर बानुडा राजू ठेहट के शराब के भरे ट्रकों को ही लूटने लगे जिसके चलते ठेहट को आर्थिक रूप से संकट झेलना पड़ा। 

जून 2006 में राजू ठेहट से बदला लेने के लिए पहले ठेहठ के सरंक्षक गोपाल फोगावट को गोलियों से छलनी कर दिया। अब गोपाल फोगावट की हत्या के बाद बदले की आग राजू ठेहट के अंदर भी जलने लगी। साल 2012 तक दोनों गैंग अंडरग्राउंड रही और जब 2012 में बलबीर बानुडा, आनंदपाल और राजू ठेहट की गिरफ्तारी हुई तो बदले की आग फिर सुलगने लगी। बानुडा के खास दोस्त सुभाष बराल ने 26 जनवरी 2013 को सीकर जेल मे बंद राजू ठेहट पर हमला कर दिया लेकिन इस हमले मे राजू ठेहट बच गया।

हमले के बाद राजू ठेहट ने अपनी गैंग की कमान अपने भाई ओमप्रकाश उर्फ ओमा ठेहट को सौंप दी। इसी दौरान आनंदपाल और बलबीर बानुडा बीकानेर जेल मे बंद थे। संयोग से ओमा ठेहट का साला जयप्रकाश और रामप्रकाश भी बीकानेर जेल मे ही बंद थे। बदला लेने के लिए दोनों के पास हथियार पहुंचाए और 24 जुलाई 2014 को बीकानेर जेल मे बलवीर बानुडा और आनंदपाल पर हमला बोल दिया गया। इस हमले में आनंदपाल तो बच गया लेकिन बलवीर बानूडा मारा गया। बानूडा की मौत के बाद आनंदपाल ने बदला लेने की ठान ली और राजू ठेहट को मौत के घाट उतारने की कसम खा ली। दोनों गैंगों में गैंगवार होने लगी। इसी बीच एनकाउंटर में आनंदपाल मारा गया। अब ठेहट की गोली मारकर हत्या कर दी गई।